गुजराती हिंदुओं को भी है जीने का अधिकार  -विनोद बंसल

गुजराती हिंदुओं को भी है जीने का अधिकार  -विनोद बंसल

दिल्ली। सम्पूर्ण विश्व कभी भूल नहीं सकता 27 फरवरी 2002 की वह कालिखमयी भोर, जब गुजरात के गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी धू धू कर जल रही थी और अन्दर फंसे स्त्री, पुरुष, बच्चे व बुजुर्ग चीत्कार रहे थे। सोते हुए राम भक्तों से भरी रेल की उस बोगी को षडयंत्र पूर्वक जलाकर उसमें सवार 59 निर्दोष कारसेवकों की किस तरह नृशंस हत्या की गई, कौन नहीं जानता। वे सभी कार सेवा करके अयोध्या से लौट रहे थे। हिंदू समाज के रोष, या यूं कहें कि क्रिया की प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप गुजरात में कुछ घटनाएं हुईं और संपूर्ण हिंदू समाज उसमें उठ खड़ा हुआ। 
उसी दौरान की घटना है जिसके तहत बिलकिस बानो नामक एक महिला से बलात्कार और कुछ लोगों की हत्या के आरोप में 11 हिंदुओं को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उस सजा की अवधि पूरी होने से पूर्व, सामान्य न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने, उनके आचरण के आधार पर, कारावास की अवधि को कम करके, उनको जाने की अनुमति दे दी। कहा कि सरकार चाहे तो उनको सामान्य जीवन जीने दे सकती है। माननीय न्यायालय ने यह भी कहा यदि सरकार इस बारे में नहीं सुनती तो आप हमारे पास वापस आ सकते हैं। राज्य सरकार ने निर्णय लिया और उन सभी लोगों को जेल से बाहर करने की प्रक्रिया, जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय अनुसार थी, पूरा किया। 
जेल से बाहर आते ही, जैसा कि स्वाभाविक है उनके परिजन, पडौसी, मित्र, रिश्तेदार, स्वागत के लिए पहुंच गए। कुछ ने प्रसाद/ मिठाई भी खिलाई होंगी। किंतु, उस पर जिहादी व सेक्युलर ब्रिगेड तथा उसके साथियों को तीखी मिर्ची लग गई। कहने लगे कि जो लोग जेल से छूटे हैं वे तो बलात्कारी हैं, हत्यारे हैं। ऐसा कैसे हो गया, वे बाहर कैसे आ सकते हैं, स्वागत कैसे हो सकता है.. इत्यादि बातें उन सभी को पुनः दोषी सिद्ध करने के लिए प्रारंभ हो गईं। 
यह बात भी स्मरणीय है कि जिन लोगों ने मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार, राज्य पुलिस, और राज्य शासन-प्रशासन पर भरोसा व्यक्त ना करते हुए मामले की सुनवाई पास के राज्य महाराष्ट्र में किए जाने की जिद पकड़ी थी, उनकी बात मानी भी गई, वे फिर भी आज उसी राज्य सरकार को कोसने लगे हैं। मामले की पूरी सुनवाई महाराष्ट्र में हुई, मुंबई उच्च न्यायालय ने फैसला दिया। मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा और वहां से अंतिम निर्णय मिला। अब  सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर राज्य सरकार की आम माफी योजनांतर्गत ही उन्हें छोड़ा गया है। ऐसे में, सेक्युलर ब्रिगेड को नहीं पच रहा कि कोई गुजराती हिंदू शांति और स्वाभिमानी जीवन जी सके। एक बार फिर, वे, उन सबके लिए फांसी का फंदा लेकर खड़े हैं। 
प्रश्न उठता है कि न्यायालय द्वारा दिया गया यह समाधान क्या पहली बार था! नहीं, देश में अनेक बार इससे भी ज्यादा गंभीर अपराधों के लिए न्यायालय ने क्षमादान दिए है। हजारों ऐसे लोगों को पूर्व में भी जेलों से विभिन्न्य राज्यों में छोड़ा जा चुका है। इस बार भी 15 अगस्त को ही हजारों कैदियों को आम माफी योजना के अंतर्गत विभिन्न राज्य सरकारों ने छोड़ा है। किन्तु, किसी ने आज तक नहीं पूछा कि उनमें कितने मुसलमान थे, बलात्कारी थे, हत्यारे थे.. इत्यादि! स्वयं राजीव गांधी के हत्यारों को भी छोड़ा जा चुका है। वे तो देश के प्रधानमंत्री थे! राज-नेताओं ने अनेक आतंकियों तक को छुड़वा दिया। पूर्व की उत्तर प्रदेश की सरकार ने तो दुर्दांत आतंकवादियों के केस भी खुलेआम वापस ले लिए थे, क्योंकि वे सब मुस्लिम थे! 
जो लोग इस घटना पर महिला सम्मान या नारी सशक्तिकरण के प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं, वे उस समय चुप थे जब नूपुर शर्मा को सरे आम बलात्कार की धमकीयां दी जा रहीं थीं, 'सर तन से जुदा' के नारे  लगा कर सरे आम नृशस हत्या को अब भी उतारू हैं, वे तब भी चुप थे जब अजमेर शरीफ का फारुख चिश्ती सैंकड़ों नाबालिग बेटियों के साथ कितने ही दिनों तक अनवरत बलात्कार करता रहा, व करवाता रहा। वह तो यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष था। होठ तब भी सिले थे, जब 1995 के कुख्यात ‘तंदूर कांड’ में कांग्रेस के ही यूथ लीडर ने युवती के टुकड़े-टुकड़े कर दिल्ली में एक पाँच सितारा होटल के तंदूर में भून दिया था। वह भी तो रिहा हो गया था। कश्मीर घाटी से उठी हिन्दू बहिन-बेटियों की चीत्कार व मस्जिदों से उनके बलात्कार की घोषणाएं तो इन को कैसे याद हो सकती हैं! अंतर यही है ना कि ये सभी हिन्दू बेटियाँ थीं। 
अरे! यहाँ तो विमान अपहर्ताओं को भी विधायक बना दिया जाता है तब भी कोई चूँ तक नहीं करता! लालू प्रसाद यादव जैसे नेता, जो सजा काट रहे हैं, अनेक मामलों में आरोपी भी हैं, उनको तो फूल देने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री आते हैं, तब भी सब के मुंह में दही जमा रहता है। किसी को ध्यान भी नहीं होगा कि जिहादियों द्वारा गोधरा में जिंदा जलाए गए रामभक्त कार्-सेवकों में कितनी मासूम बेटियाँ, बेटे, महिलाएं व बुजुर्ग थे! 11 लोगों की जेल से मुक्ति को लेकर जिन लोगों के पेट में दर्द हो रहा है उससे उनकी हिंदू विरोधी मानसिकता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। 
दूसरा प्रश्न है सत्कार का। इतने लंबे काल की सजा काटने के बाद, जेलमुक्त हुए लोगों के परिजनों को क्या माला पहनाने का या प्रसाद /मिठाई खिलाने का भी अधिकार नहीं है! माला नहीं तो क्या वे अपने परिजनो के लिए जेल के बाहर फांसी के फंदे लेकर खड़े होते! कुल मिला कर, जब किसी एक्शन का रिएक्शन होता है उस पर सारे आसमान सिर पर उठा लेते हैं जबकि गोधरा जैसे पाशविक व नरसंहारी कुकृत्य पर गहरी चुप्पी साध जाते हैं! हालांकि, इस स्वागत की बात में किसी हिंदू संगठन का कोई हाथ नहीं है, फिर भी मीडिया का एक वर्ग भ्रामक व झूठी खबरें फैला कर विश्व हिंदू परिषद जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन को बदनाम करने पर तुला है। उससे उसे बाज आना होगा।  
इस मामले में जो लोग नैतिकता का हवाला देते हैं, वे भूल जाते हैं यह हिंदू समाज ही है जो यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता के सिद्धांत पर चलकर मुस्लिम नारियों को भी तीन तलाक और हलाला जैसी अमानवीय कुप्रथा से मुक्ति दिलाने के लिए आगे बढ़ता है। किंतु ये लोग नैतिकता के मापदंड भी सांप्रदायिक रूप से अलग अलग करते हैं। हमने देखा कि गुजरात दंगों के बाद राज्य के मुख्यमंत्री और वहां के हिंदूवादी नेताओं के पीछे दशकों तक यह सेक्युलर ब्रिगेड और जिहादियों के रिश्तेदार लगातार हमले करते रहे। राज्य के मुख्यमंत्री को तो विदेश जाने के लिए वीजा तक में ये षड्यंत्रकारी रोडे डालते रहे। पूरी सरकार और हिंदू समाज को गुजरात दंगों के नाम पर कटघरे में खड़ा करने का कुत्सित प्रयास विदेशी शक्तियों के साथ मिलकर दशकों तक जारी रहा। लेकिन सच्चाई आखिर छुप नहीं सकती। माननीय न्यायालयों ने प्रत्येक मामले की निष्पक्ष सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक मामले को ले गए और सच्चाई की विजय हुई। लेकिन, अब जब लोग सजा भी काट आए तब भी उनको अपराधी सिद्ध करने के लिए पुनः प्रयास हो रहे हैं। उनके सामने फांसी के फंदे लेकर लोग घूम रहे हैं। वे अभी भी उन सभी के लिए बलात्कारी, हत्यारे, अपराधी, हिंसक और समाज के लिए खतरा जैसे बेहूदा शब्दों का प्रयोग करके मुस्लिम समाज को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। अब यह सब रुकना चाहिए और जिन लोगों को भारत की न्याय व्यवस्था और शासन प्रशासन के तंत्र में विश्वास नहीं, उन्हें कोई अन्य विकल्प ढूंढ लेना चाहिए। 
गुजराती हिन्दू समाज के दोहन और उसके साथ दोगला व्यवहार अब और नहीं सहा जा सकेगा। इन सब लोगों को समझना पड़ेगा कि गुजराती हिंदू समाज जिसे ये बार-बार अपराधी साबित करने पर तुले हैं, उस समाज ने गंभीर आपदाओं से लड़ते हुए भी स्वयं के साथ संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में बड़ा योगदान दिया है। ये गुजरात के लाल ही हैं जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री के रूप में विश्व पटल पर भारत की छवि को चमकाने में अप्रतिम योगदान किया है। अब बहुत हो चुका, हिंदू द्रोही मानसिकता पर विराम लगना ही चाहिए और गुजराती हिंदुओं को भी अपनी सीधी सपाट और न्याय पूर्ण जिंदगी जीने का अवसर मिलना ही चाहिए।