हनुमान जी को तीन लोको में सबसे अधिक शक्तिशाली भगवान माना जाता है- बीके शर्मा 

हनुमान जी को तीन लोको में सबसे अधिक शक्तिशाली भगवान माना जाता है- बीके शर्मा 

विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मर्षि विभूति बी के शर्मा हनुमान ने बताया कि  भगवान हनुमान जी का जन्मदिवस चैत्र पूर्णिमा को मनाया जाता है हिन्दुओं का यह प्रमुख पर्व है। इसको हनुमान जयंती भी कहते है हनुमान जी की माता का नाम अंजनी और पिता का केसरी था उन्होंने माता पिता के साथ – साथ अपने धर्म गुरु पवन से भी विद्या ली, शबरी के गुरु ऋषि मतंग से विद्या प्राप्त की। भगवान सूर्य ने उनको सब तरह की विद्या दी हनुमान जी को बजरंगबली, केसरी नंदन, पवनकुमार, मारुति, पवनपुत्र, संकटमोचन आदि के नाम से भी जाना जाता है।भगवान हनुमान जी अपने कौशल और बुद्धि के लिए भी जाने जाते है उन्होंने अकेले ही पूरी लंका की जला दिया रावण महाशक्तिशाली था वो भी उसे रोक नहीं पाए। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों और “हनुमान चालीसा” और “रामायण” में विशेष रूप से वर्णन किया गया है हनुमान जी भक्तों को साहस, शौर्य, बल से जीवन शक्ति प्रदान करते है।

भारत के सभी राज्यों में हनुमान जयंती मनाई जाती है “हनुमान चालीसा” भगवान हनुमान जी का प्रिय ग्रंथ है वह हमेशा बहुत पढा जाता है। भगवान हनुमान जी के जयंती के दिन हनुमान जी को नए वस्त्र और फूलों से सजाया जाता है। हनुमान जी की मूर्ति को सिंदूर से सजाया जाता है फल और मिठाई का भोग लगाते है। हनुमान जयंती वाले दिन मंदिरो में हनुमान चालीसा और सुंदर कांड, धार्मिक उत्साह के साथ भक्तगण पढ़ते है भगवान हनुमान जी को भगवान श्री राम का परम भक्त माना जाता है। वह अपने प्रचंड भुजबल के साथ – साथ सौम्य, शांत स्वभाव के लिए जाने जाते है भक्तों को साहस, शक्ति,बलशाली होने का आशीर्वाद देते है रामायण में उनका महत्वपूर्ण स्थान है हिंदूओ के देवता विष्णु के रूप में (अवतार) थे।हनुमान जी शक्ति और भक्ति के प्रतीक है हनुमान जी के जीवन से हमको यह सीख मिलती है विनम्र बने और संघर्ष से न डरते है अपने लक्ष्य की और बढ़ते रहे, हनुमान जी की पूजा करने से भक्ति को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।

1. सीखने की लगन : हनुमानजी ने बचपन से लेकर अंत तक सभी से कुछ ना कुछ सीखा था। कहते हैं कि उन्होंने अपनी माता अंजनी और पिता केसरी के साथ ही धर्मपिता पवनपुत्र से भी भी शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने शबरी के गुरु ऋषि मतंग से भी शिक्षा ली थी और भगवान सूर्य से उन्होंने सभी तरह की विद्या ग्रहण की थी।
 
 2. कार्य में कुशलता और निपुणता : हनुमानजी के कार्य करने की शैली अनूठी थी साथ वे कार्य में कुशल और निपुण थे। उन्होंने सुग्रीव की सहाता हेतु उन्हें श्रीराम से मिलाया और राम की सहायता हेतु उन्होंने वह सब कुछ अपनी बुद्धि कौशल से किया जो प्रभु श्रीराम ने आदेश दिया। वे कार्य में कुशल प्रबंधक हैं। हनुमानजी ने सेना से लेकर समुद्र को पार करने तक जो कार्य कुशलता व बुद्धि के साथ किया वह उनके विशिष्ट मैनेजमेंट को दर्शाता है।

3. राइट प्लानिंग, वैल्यूज और कमिटमेंट : हनुमानजी को जो कार्य सौंपा जाता था पहले वह उसकी प्लानिंग करते थे और फिर इंप्लीमेंटेशन करते थे। जैसे श्रीराम ने तो लंका भेजते वक्त हनुमानजी से यही कहा था कि यह अंगुठी श्री सीता को दिखाकर कहना की राम जल्द ही आएंगे परंतु हनुमानजी ही जानते थे कि समुद्र को पार करते वक्त बाधाएं आएगी और लंका में प्रवेश करते वक्त भी वह जानते थे कि क्या होने की संभावना है। उन्होंने कड़े रूप में रावण को राम का संदेश भी दिया, विभीषण को राम की ओर खींच लाएं, अक्षयकुमार का वध भी कर दिया और माता सीता को अंगुठी देकर लंका भी जला डाली और सकुशल लौट भी आए। यह सभी उनकी कार्य योजना का ही हिस्सा था। बुद्धि के साथ सही प्लानिंग करने की उनमें गजब की क्षमता है। हनुमानजी का प्रबंधन क्षेत्र बड़े ही विस्तृत, विलक्षण और योजना के प्रमुख योजनाकार के रूप में जाना जाता है। हनुमानजी के आदर्श बताते हैं कि डेडिकेशन, कमिटमेंट, और डिवोशन से हर बाधा पार की जा सकती है। लाइफ में इन वैल्यूज का महत्व कभी कम नहीं होता।लंका पहुंचने से पहले उन्होंने पूरी रणनीति बनाई। असुरों की इतनी भीड़ में भी विभीषण जैसा सज्जन ढूंढा। उससे मित्रता की और सीता मां का पता लगाया। भय फैलाने के लिए लंका को जलाया। विभीषण को प्रभु राम से मिलाया। इस प्रकार पूरे मैनेजमेंट के साथ काम को अंजाम दिया।
 
 4. दूरदर्शिता : यह हनुमानजी की दूरदर्शिता ही थी कि उन्होंने सहज और सरल वार्तालाप के अपने गुण से कपिराज सुग्रीव से श्रीराम की मैत्री कराई और बाद में उन्होंने विभीषण की श्रीराम से मैत्री कराई। सुग्रीम ने श्रीराम की मदद से बालि को मारा तो श्रीराम ने विभीषण की मदद से रावण को मारा। हनुमानजी की कुशलता एवं चतुरता के चलते ही यह संभव हुआ था।
 
 5. नीति कुशल : राजकोष व पराई स्त्री को प्राप्त करने के बाद सुग्रीव ने श्रीराम का साथ छोड़ दिया था परंतु हनुमानजी ने उसे चारों विधियों साम, दाम, दण्ड, भेद नीति का प्रयोग कर श्रीराम के कार्यों के प्रति उनकी जिम्मेदारी और मैत्रीधर्म की याद दिलाई। इसके अलावा ऐसे कई मौके थे जबकि हनुमानजी को नीति का प्रयोग करना पड़ा था। हनुमानजी मैनेजमेंट की यह सीख देते हैं कि अगर लक्ष्य महान हो और उसे पाना सभी के हित में हो तो हर प्रकार की नीति अपनाई जा सकती है।

 6. साहस : हनुमानजी में अदम्य साहस है। वे किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों से विचलित हुए बगैर दृढ़ इच्छाशक्ति से आगे बढ़ते गए। रावण को सीख देने में उनकी निर्भीकता, दृढ़ता, स्पष्टता और निश्चिंतता अप्रतिम है। उनमें न कहीं दिखावा है, न छल कपट। व्यवहार में पारदर्शिता है, कुटिलता नहीं। उनमें अपनी बात को कहने का नैतिक साहस हैं। उनके साहस और बुद्धि कौशल व नीति की प्रशंसा तो रावण भी करता था।

7. लीडरशिप : हनुमानजी श्रीराम की आज्ञा जरूर मानते थे परंतु वह वानरयूथ थे। अर्थात वह संपूर्ण वानर सेना के लीडर थे। सबको साथ लेकर चलने की क्षमता श्रीराम पहचान गए थे। कठिनाइयों में जो निर्भयता और साहसपूर्वक साथियों का सहायक और मार्गदर्शक बन सके लक्ष्य प्राप्ति हेतु जिसमें उत्साह और जोश, धैर्य और लगन हो, कठिनाइयों पर विजय पाने, परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर लेने का संकल्प और क्षमता हो, सबकी सलाह सुनने का गुण हो वही तो लीडर बन सकता है। उन्होंने जामवंत से मार्गदर्शन लिया और उत्साह पूर्वक रामकाज किया। सबको सम्मानित करना, सक्रिय और ऊर्जा संपन्न होकर कार्य में निरंतरता बनाए रखने की क्षमता भी कार्यसिद्धि का सिद्ध मंत्र है।
 श्रीमद्भागवत गीता और मैनेजमेंट के सिद्धांत
 8. हर परिस्थिति में मस्त रहना : हनुमानजी के चेहरे पर कभी चिंता, निराशा या शोक नहीं देख सकते। वह हर हाल में मस्त रहते हैं। हनुमानजी कार्य करने के दौरान कभी गंभीर नहीं रहे उन्होंने हर कार्य को एक उत्सव वा खेल की तरह लिया। उनमें आज की सबसे अनिवार्य मैनेजमेंट क्वॉलिटी है कि वे अपना विनोदी स्वभाव हर सिचुएशन में बनाए रखते हैं। आपको याद होगा लंका गए तब उन्होंने मद मस्त होकर खूब फल खाए और बगीचे को उजाड़कर अपना मनोरंजन भी किया और साथ ही रावण को संदेश भी दे दिया। इसी तरह उन्होंने द्वारिका के बगीचे में भी खूब फल खाकर मनोरंजन किया था और अंत में बलराम का घमंड भी चूर कर दिया था। उन्होंने मनोरंजन में ही कई घमंडियों का घमंड तोड़ दिया था।

9. शुत्र पर निगाहें : हनुमानजी किसी भी परिस्थिति में कैसे भी हो। भजन कर रहे हो या कहीं आसमान में उड़ रहे हैं या फल फूल खा रहे हों, परंतु उनकी नजर अपने शत्रुओं पर जरूर रहती है। विरोधी के असावधान रहते ही उसके रहस्य को जान लेना शत्रुओं के बीच दोस्त खोज लेने की दक्षता विभीषण प्रसंग में दिखाई देती है। उनके हर कार्य में थिंक और एक्ट का अद्भुत कॉम्बिनेशन है।

 10. विनम्रता : हनुमानजी महा सर्वशक्तिशाली थे। हनुमानजी के लंका को उजाड़ा, कई असुरों का संहार किया, शनिदेव का घमंड चूर चूर किया, पौंड्रक की नगरी को उजाड़ा, भीम का घमंड किया चूर किया, अर्जुन का घमंड चूर किया, बलरामजी का घमंड चूर किया और संपूर्ण जगत को यह जता दिया कि वे क्या हैं परंतु उन्होंने कभी भी खुद विन्रता और भक्ति का साथ नहीं छोड़ा। रावण से भी विनम्र रूप में ही पेश आए तो अर्जुन से भी। सभी के समक्ष विनम्र रहकर ही उन्हें समझाया परंतु जब वे नहीं समझे तो प्रभु की आज्ञा से ही अपना पराक्रम दिखाया।