हस्तशिल्प के निर्यात के क्षेत्र में बढ़ती संभावनाएँ और चुनौतियाँ  - चिरंजी लाल कटारिया

हस्तशिल्प के निर्यात के क्षेत्र में बढ़ती संभावनाएँ और चुनौतियाँ  - चिरंजी लाल कटारिया

भारतीय ग्रामीण उत्पादों के निर्यात के जनक माने जाने वाले लखी बंजारा का युग बीत गया । ईरान काबुल और उज़बेकिस्तान की सरहदों से बाहर यूरोपीय देशों में भारतीय हस्तशिल्प की धूम मची है । वर्ष 2021-22 में भारतीय हस्तशिल्पियो  ने 33253 करोड़ रूपये के उत्पादों का निर्यात किया । जो एक रिकॉर्ड है । यह पिछले वर्षों की तुलना में 30% की बढ़ोतरी है । सबसे ज़्यादा निर्यात 36.76 अमेरिका व दूसरे नंबर पर 5.89 संयुक्त अरब अमीरात को होता है । जर्मनी , इंग्लैंड, नीदरलैंड,फ़्रांस,जर्मनी,आस्ट्रेलिया व जापान भी भारतीय हैंडीक्राफ्ट के प्रमुख ख़रीद दार है।

देश में हैंडिक्राफ्ट सेक्टर से मोटे अनुमान के तौर पर क़रीब सात मिलियन लोग जुड़े है । जिनमें ज़्यादातर महिलाएँ है ।  काग़ज़ी कार्रवाई व निर्धारित सरकारी प्रक्रिया के कारण ज़्यादातर निर्यात मध्यम श्रेणी  की कंपनियों द्वारा किया जाता है । यधपि सरकार ने आई ई सी कोड व निर्यात की लाइसेंस प्रकिया को काफ़ी सरल बना दिया है । फिर भी देश की आधी आबादी को हस्तशिल्प की निर्यात प्रकिया से जोड़ना बाकि है । क्यों कि निर्यात होने वाले हस्तशिल्प के ज़्यादातर उत्पाद ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों के द्वारा ही बनाए जाते है । जिन्हें मध्यम श्रेणी की कंपनियाँ ओने पौने दामों पर ख़रीद कर निर्यात करती है । इसी संबंध में ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों को वाजिब दाम दिलाने व उन्हें निर्यात के क्षेत्र में सीधे भागीदार बनाने के प्रयास शुरू किये जा रहे है ।

भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय का थिंक टैंक  माने जाने वाले संस्थान राष्ट्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज संस्थान मई माह में एक कार्यशाला आयोजित कर रहा है जिसमें निर्यात से जुड़े विशेषज्ञों के साथ साथ राज्य सरकारों के नोडल अधिकारियों को भी आमंत्रित किया गया है ताकि ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों को हस्तशिल्प व हैंडलूम के निर्यात के क्षेत्र से सीधे तौर पर जोड़ा जा सके । इस कार्यशाला में निर्यात के व्यवहारिक पहलुओं पर चर्चा होगी । क्यों कि समूहों की सप्लाई चैन मज़बूत होना ज़रूरी है ।

हस्तशिल्प व हैंडलूम की मार्केटिंग की चुनौतियों को लेकर राष्ट्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज संस्थान का मार्केटिंग डिविज़न पहले से ही परिचित है । पैकेजिंग  व डिज़ाइनिंग स्वयं सहायता समूहों के सामने एक चुनौती है जिसमें कुछ स्तरों पर काफ़ी सुधार हुआ है ।

निफ़्ट व इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पैकेजिग की मदद से स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के उत्पादों की गुणवत्ता में काफ़ी सुधार हुआ है लेकिन अभी काफ़ी रास्ता तय करना बाकि है । लेकिन जो स्वयं सहायता समूह निर्यात के मापदंडों पर खरे उतर रहे हैं उन्हें अपने उत्पाद निर्यात करवाने के लिए रोड मैप तैयार किया जा रहा है । जहां तक बात स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों के सकारात्मक पहलुओं की है इन उजले पहलुओं की बदौलत ही कंपनियों का मुनाफ़ा बढ़ रहा है । ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा निर्मित 

भारतीय हस्तशिल्प कलाओं में भारतीय कला व संस्कृति की स्पष्ट झलक मिलती है । भले ही वो महाराष्ट्र की पैठनी साड़ी , गुजरात की  पटौला , बंगाल की तात व काथा,उड़ीसा की संभल पुरी , मध्य प्रदेश की चन्देरी व बनारस की बनारसी साड़ियों की बुनावट का कोई सानी नहीं है ।

बस्तर की ढोकरा शिल्प,भुवनेश्वर महा बलीपुरम ,आगरा की पत्थर की नक़्काशी,कच्छ की पीपली शिल्प, आंध्र प्रदेश की कोडापलली , बिहार की मधुबनी , महाराष्ट्र की वर्ली पैटिंग, ओड़िसा के पट्ट चित्र, सहित अनेकों शिल्पों को संजोने व बाज़ार तक पहुँचाने में ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को प्रमुख योगदान है । देश की इस आधी आबादी के योगदान का बाज़ार की तमाम शक्तियाँ लोहा मान रही है । यधपि बाज़ार का सूक्ष्म मनोविज्ञान होता है जो लाभ हानि के गणित पर आधारित होता है । सरस मेलों के माध्यम से ग्रामीण महिलाएँ कस्टमर के मनोविज्ञान और बाजार की ज़रूरतों को समझती है । सरस मेलों की वजह से ग्रामीण महिलाओं में व्यवसायिक दृष्टिकोण पनपा है । 1999 के जमाने की महिलाएँ अब कस्टमर से शिद्दत से मोलभाव करती है ।

ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने न केवल देश की सांस्कृतिक विरासत को सँभाला हैं बल्कि घर की देहरी लांघकर बाज़ार के स्थापित मानदंडों में भी अपनी जगह बनाई है । महिला सशक्तिकरण व रोज़गार की दिशा से जुड़ी राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन  की यह मुहिम पूरे विश्व की सबसे बड़ी कामयाब योजना है जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा दी है। लेकिन उत्पादों की साज सज्जा, डिज़ाइन, पैकिंग, कस्टमर संवाद , मूल्य निर्धारण जैसे विषयों में पारंगत होने की यात्रा जारी है । राष्ट्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज संस्थान व ग्रामीण विकास मंत्रालय इस दिशा में संवेदनशील है और नये प्रशिक्षण कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई जा रही है । 

लेकिन ग्रामीण उत्पादों को लेकर निर्यात की दिशा में भी पहल हो चुकी है जिसके जल्दी ही सार्थक परिणाम निकलेंगे । जल्दी ही आधी आबादी के हुनर से बने उत्पाद विश्व पटल पर नज़र आयेंगे । जब उन्हीं की कंपनी होगी और उन्हीं का लाभ। फ़िलहाल राष्ट्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज संस्थान व ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस दिशा में पहल शुरू कर दी है ।