हनुमान जी की उपासना का उद्देश्य

हनुमान जी की उपासना का उद्देश्य

17 अप्रैल को श्रीरामनवमी संपन्न हुई। युगों से जिनके दैवी अवतारत्व का चिन्ह जनमानस में अंकित है, वे अयोध्या के राजा प्रभु श्रीरामचंद्र इस घोर कलियुग में भी श्रीरामनवमी के निमित्त पुनः एक बार प्रत्येक के मन में अंतस्थ विराजमान हो गए हैं । अब श्रीराम भक्त महाबली हनुमान जी का अवतरण होगा । 23 अप्रैल को हनुमान जयंती है ।

जिनका मंत्र ‘रामभक्ति’ तथा धुन ‘रामसेवा’ ही है, वे हनुमानजी हैं । प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के पश्चात उनके श्रीचरण कमलों में बैठकर हनुमान जी ने अपने प्राण नाथ प्रभु से आर्तता से आगे दी हुई प्रार्थना की ।

‘प्रभु श्रीराम के दिव्य अवतारी चरित्र का पुनः पुनः स्मरण करने, उसमें निहित श्रीराममय भावार्थ का चिंतन करने एवं रामचरित्र का गायन करने में ही प्रभु श्रीराम के निर्गुण (अमूर्त) रूप का दर्शन करने के समान ही आनंद मिलता है । ‘हे प्रभु, इन प्रयत्नों द्वारा इस दास हनुमान को ‘जब इच्छा हो, तब रघुकुल दीपक प्रभु श्रीराम का दर्शन मिले’, ऐसा वर दीजिए ।’

अन्य देवताओं की तुलना में हनुमान जी में अत्यधिक प्रकट शक्ति है । अन्य देवताओं में प्रकट शक्ति केवल 10 प्रतिशत होती है, जबकि हनुमानजी में प्रकट शक्ति 70 प्रतिशत होती है । अत: हनुमान जी की उपासना अधिक मात्रा में की जाती है । हनुमान जी की उपासना से जागृत कुंडलिनी के मार्ग में आई बाधा दूर होकर कुंडलिनी को योग्य दिशा मिलती है । साथ ही भूतबाधा, जादू-टोना अथवा पितृदोष के कारण होने वाले कष्ट, शनि पीडा इत्यादि का निवारण भी होता है । महाराष्ट्र में शनिवार को हनुमान जी का दिन मानते हैं एवं भारत के अन्य भागों में शनिवार तथा मंगलवार मारुति के दिन माने जाते हैं । इस दिन हनुमान जी के देवालय में जाकर उन्हें सिंदूर एवं तेल अर्पण करने की प्रथा है । कुछ स्थानों पर हनुमान जी को नारियल भी चढाते हैं ।

हनुमानजी की पूजा में मदारके फूलों का प्रयोग किया जाता है । फूल चढाते समय फूलों के डंठल हनुमान जी की प्रतिमा की ओर होते हैं । कहते हैं, हनुमानजी को मदार के फूल अच्छे लगते हैं; परंतु यह मानसिक स्तर का विश्लेषण हुआ । इसका अध्यात्मशास्त्रीय कारण यह है कि, मदारके फूलों में हनुमान जी की तत्त्व तरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट होती हैं तथा फूलों से पवित्रकों के रूप में प्रक्षेपित भी होती हैं ।

ऐसा कहते हैं कि, देवता को जो वस्तु भाती है, वही उन्हें पूजामें अर्पण की जाती है । उदाहरण के रूप में गणपति को लाल फूल, शिवजी को बेल, विष्णु को तुलसी इत्यादि । वास्तवमें उच्च देवताओं की रुचि-अरुचि नहीं होती । विशिष्ट वस्तु अर्पण करने के पीछे अध्यात्मशास्त्रीय कारण होता है । पूजा का उद्देश्य है, मूर्ति में चैतन्य निर्माण होकर पूजक को उसका लाभ हो । यह चैतन्य निर्माण होने के लिए विशिष्ट देवता को विशिष्ट वस्तु अर्पित की जाती है, जैसे हनुमान जी को तेल, सिंदूर एवं मदार के फूल तथा पत्ते । इन वस्तुओं में हनुमानजी के महालोक तक के देवता के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण, जिन्हें पवित्रक कहते हैं, उन्हें आकृष्ट करने की क्षमता होती है । अन्य वस्तुओं में ये पवित्रक आकृष्ट करने की क्षमता अल्प होती है । इसी कारण हनुमानजी को तेल, सिंदूर एवं मदार के पुष्प-पत्र इत्यादि अर्पण करते हैं ।

कालानुसार आवश्यक उपासना

आजकल विविध प्रकारोंसे देवताओंका अनादर किया जाता है । व्याख्यान, पुस्तक, नाटिका इत्यादि के माध्यम से देवताओं की अवमानना की जाती है । व्यावसायिक कारणों से विज्ञापनों के लिए देवताओं का उपयोग ‘मॉडल’ के रूप में किया जाता है । देवताओं की वेशभूषा में भीख मांगी जाती है । ये सभी अपनमानजनक प्रकार हनुमानजी के संदर्भ में भी होते हैं । व्यंगचित्र अर्थात् कार्टून, विज्ञापन, नाटिका इनमें ऐसी अवमानना हमें विशेष रूप से दिखाई देती है । आस्ट्रेलियाके कोरियर मेल इस वृतपत्र में आस्ट्रेलियन क्रिकेटर एन्ड्रू साईमनको हनुमान के रूप में दिखाकर भगवान तुल्य दिखाया गया ।

मेक माई ट्रिप इस भारतीय यातायात कंपनी ने अपने विज्ञापन में हनुमान जी के हृदय के स्थान पर श्री राम एवं सीता की अपेक्षा चलों लंका ऐसा संदेश लिखा हुआ दिखाया । यदि हम ऐसे अनादर को देखते हुए भी रोकने का प्रयास न करें, तो क्या हनुमानजी की कृपा हम पर होगी ? निश्चित ही नहीं !

देवताओं की उपासना की नींव है, श्रद्धा । देवताओं का अनादर श्रद्धा को प्रभावित करता है । इससे धर्महानि भी होती है । यह धर्महानि रोकना कालानुसार आवश्यक धर्मपालन ही है । यह देवता की समष्टि स्तर की अर्थात सामाजिक स्तर की उपासना ही है । व्यष्टि अर्थात व्यक्तिगत उपासना के साथ समष्टि अर्थात सामाजिक उपासना किए बिना देवता की उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती । अतः हनुमानजी के भक्तों को भी हनुमानजी के अनादर के प्रति जागरूक होकर सार्वजनिक उद्बोधन के माध्यम से यह धर्महानि रोकने का प्रयास करना चाहिए । यह धर्महानि रोकने के लिए हनुमान जी हमें बल, बुद्धि तथा क्षात्रवृत्ति प्रदान कर साधना में आनेवाले विघ्नों का अवश्य हरण करेंगे ।