मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम में फेफड़ों के कैंसर से लड़ो अभियान लांच

मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम में फेफड़ों के कैंसर से लड़ो अभियान लांच

हरेश उपाध्याय की रिपोर्ट...

गुरुग्राम: आज डॉ. नरेश त्रेहान चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर मेदांता व डाॅ अरविंद कुमार चैयरमेन इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट सर्जरी, चेस्ट ऑन्को सर्जरी व लंग ट्रांसप्लांटेशन ने "फेफड़ों के कैंसर से लड़ो"अभियान लांच किया।इसअवसर पर डाक्टर त्रेहन ने डाक्टरों व विशेषज्ञों तथा मीडिया कर्मियों को जानकारी साझा करते हुए बताया कि इस मामले में अध्ययन के परिणाम पहले अप्रभावित रहने लोगों में बढ़ते मामले,एक चिंता का विषय है।मेदांता वैश्विक स्तरों के अनुरूप फेफड़ों के कैंसर के इलाज के अत्याधुनिक प्रिवेंटिव व इलाज की सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।

डॉ.अरविंद कुमार ने कहा कि फेफड़ों का कैंसर एक जानलेवा बीमारी है।जिसमें बचने की दर सबसे कम 5 साल है।मैं युवाओं,धूम्रपान न करने वालों और महिलाओं में इस बीमारी के बढ़ते मामलों को देखकर हैरान हूँ। पारंपरिक रूप से फेफड़ों के कैंसर का कारण धूम्रपान होता था,लेकिन अब इस बात के सशक्त प्रमाण मिल रहे हैं कि फेफड़ों का कैंसर हवा के प्रदूषण के कारण बढ़ रहा है। डा.अरविंद ने अपने व्याख्यान में बताया कि हमारा यह अभियान इसलिए है कि इस बीमारी की जागरुकता बढ़ाकर समय पर जाँच कराने का महत्व समझाया जा सके और अन्य मरीजों के साहस की कहानियों द्वारा प्रेरणा व सपोर्ट प्रदान की जा सके।

ग्लोबोकैन (ग्लोबल कैंसर ऑब्ज़र्वेटरी) एक ऑनलाईन डेटाबेस है,जो 185 देशों में 36 तरह के कैंसर के लिए और सभी कैंसर साईट्स के लिए ग्लोबल कैंसर के आँकड़े एवं घटना व मृत्युदर के अनुमान प्रदान करता है।मेदांता हॉस्पिटल की सीनियर पीआरओ नतीसा श्रीवास्तव ने हमें बताया कि डॉ. अरविंद कुमार के नेतृत्व में एक टीम ने पाया कि आउट-पेशेंट क्लिनिक में आने वाले मरीजों में धूम्रपान न करने वाले और कम उम्र वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है।मरीजों का विश्लेषण करके इन मरीजों का जनसांख्यिकीय विवरण और रूझान का एक चार्ट तैयार कर अध्ययन में 304 मरीजों का विश्लेषण किया। क्लिनिक में पहुँचने पर उम्र, लिंग, धूम्रपान की स्थिति, निदान के वक्त बीमारी के चरण और फेफड़ों के कैंसर का प्रकार दर्ज किया गया और अन्य पैरामीटर्स के साथ उनका विश्लेषण किया और पाया कि लंग कैंसर होने के कई कारक हैं। पुरुषों और महिलाओं, दोनों में फेफड़ों के कैंसर में वृद्धि देखी गई। पुरुषों मेंप्रसार व मृत्युदर के मामले में यह पहले से ही नं. 1 कैंसर है, जबकि महिलाओं में यह पिछले 8 सालों में नं. 7 (ग्लोबोकैन 2012) से उछलकर नं. 3 (ग्लोबोकैन) पर पहुँच गया है।लगभग 20 प्रतिशत मरीजों की उम्र 50 साल से कम पाई गई। इनमें से लगभग 50 प्रतिशत मरीज धूम्रपान नहीं करते थे। इनमें 70 प्रतिशत मरीज 50 साल से कम उम्र के थें और 30 साल से कम उम्र के 100 प्रतिशत मरीज धूम्रपान नहीं करते थें। 80 प्रतिशत से ज्यादा मरीजों का निदान बीमारी के विकसित चरण में हुआ, जबकि उनका पूरा इलाज संभव नहीं हो पाता है। लगभग 30 प्रतिशत मामलों में मरीज की स्थिति को प्रारंभ में भ्रमित होकर ट्यूबरकुलोसिस मान लिया गया और महीनों तक उसका इलाज किया गया।जिससे सही निदान व इलाज में विलंब हो जाता है।यदि खांसी के साथ खून आ रहा है,तो इन लक्षणों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए और उनका परीक्षण कराया जाना चाहिए।