फोर्टिस नोएडा में दो मरीजों की जीवनरक्षक स्वॉप किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी को सफलतापूर्वक किया गया

दोनों मरीज क्रोनिंग एंड-स्टेज किडनी रोग के शिकार थे
नोएडा: फोर्टिस हॉस्पीटल, नोएडा ने क्रोनिक एंड स्टेज किडनी रोग से पीड़ित दो मरीजों की एक साथ स्वॉप किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। ये जटिल और जीवनरक्षक सर्जरी डॉ अनुजा पोरवाल, डायरेक्टर – नेफ्रोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा तथा डॉ पीयूष वार्ष्णेय, डायरेक्टर – यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने मिलकर पूरी की।
पहले मामले में, हापुड़, उत्तर प्रदेश के 52-वर्षीय मरीज पिछले करीब 8 महीनों से क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ से पीड़ित होने की वजह से डायलसिस पर थे जिसकी वजह से उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ रहा था। हालांकि उनकी पत्नी ने उन्हें गुर्दा (किडनी) देने की पेशकश की थी, लेकिन दोनों के ब्लड ग्रुप असंगत (इनकॉम्पेटिबल) होने की वजह से सीधे प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) नहीं हो सकता था।
इसी तरह, एक अन्य मामला भी उत्तर प्रदेश के हापुड शहर के ही 42-वर्षीय मरीज का था और उनकी स्थति भी ऐसी ही थी। वह भी पिछले 5 महीनों से डायलसिस पर थे और उनकी पत्नी भी डोनर के रूप में आगे आयी, लेकिन इस मामले में भी ब्लड ग्रुप में मेल नहीं होने की वजह से सीधे किडनी ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता था।
इन दोनों मामलों पर विचार करने के बाद ऐसा समाधान तत्काल तलाशने की जरूरत थी जिससे दोनों मरीजों की जान बचायी जा सके। डॉ अनुजा पोरवाल, डायरेक्टर – नेफ्रोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा और डॉ पीयूष वार्ष्णेय, डायरेक्टर – यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने दोनों परिवारों को एबीओ इनकॉम्पेटिबिलिटी के बारे में जानकारी और स्वॉप किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सहमति देने की सलाह दी।
किडनी ट्रांसप्लांटेशन में, एबीओ इनकॉम्पेटिबिलिटी यानि डोनर एवं रेसिपिएंट के ब्लड ग्रुप्स को मैच करवाना महत्वपूर्ण होता है। असंगत मैच होने की स्थिति में, यदि एंटीबॉडी लेवल बहुत अधिक होता है तो रेसिपिएंट का इम्यून सिस्टम डोनर किडनी को अस्वीकार भी कर सकता है। रेसिपिएंट के शरीर में इस प्रकार की असंगत किडनी को ट्रांसप्लांट करने से पहले, एक निश्चित प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है जिसमें इम्यूनोसप्रेशन और प्लाज़्मा एक्सचेंज के बारे में सोच-विचार शामिल होता है, जिसके जरिए रेसिपिएंट के एंटीबॉडी लेवल को कम किया जाता है ताकि शरीर द्वारा अलग ब्लड ग्रुप किडनी को स्वीकार करना आसान हो। इस प्रक्रिया को ट्रांसप्लांट से कुछ हफ्तों पहले से करने की आवश्यकता होती है।
इन मामलों में, दोनों मरीजों की पत्नियां किडनी दान करने की इच्छुक थीं, लेकिन उनके ब्लड ग्रुप अपने-अपने पति से मैच नहीं करते थे, ऐसे में सीधे प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता था।
लेकिन, जब डोनर-रेसिपिएंट की दोनों जोड़ियों को आपस में स्वॉप (अदला-बदली) किया गया तो ब्लड ग्रुप्स आपस में मैच कर रहे थे। इस तरह, पहले मरीज की पत्नी ने दूसरे मरीज के लिए अपना गुर्दा दान किया, और दूसरे मरीज की पत्नी ने पहले मरीज के लिए अपना गुर्दा दोन किया, और इस तरह दोनों ही मरीजों के लिए यह मैच सफल रहा। सर्जरी से पहले, इन चारों व्यक्तियों (दोनों मरीजों और उनकी पत्नियों) की गहन मेडिकल जांच की गई, जिसमें इम्यून क्रॉस-मैचिंग, सीटी एंजियोग्राफी से रक्त की धमनियों की जांच, किडनी फंक्शन का मूल्यांकन करने के लिए डीटीपीए स्कैन के अलावा सामान्य स्वास्थ्य और हृदय की जांच शामिल थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सभी सर्जरी के लिए पूरी तरह से फिट हैं।
इन सभी की सर्जरी एक साथ की गई और हर सर्जरी करीब पांच घंटे चली। चार लोगों की एक साथ सर्जरी करना काफी चुनौतीपूर्ण था और इस वजह से और भी जटिल था क्योंकि एक डोनर और एक रेसिपिएंट मोटापे की समस्या से भी ग्रस्त थे, जिसके चलते अतिरिक्त सावधानी और सटीकता की आवश्यकता थी। लेकिन इसके बावजूद, दोनों ट्रांसप्लांट सफल रहे और चारों लोग स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं।
इन मामलों की और जानकारी देते हुए, डॉ अनुजा पोरवाल, डायरेक्टर – नेफ्रोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने बताया, “दोनों मरीज डायलसिस पर थे और अब उस स्टेज पर पहुंच चुके थे जहां ट्रांसपलांट के लिए और इंतजार करना उनके लिए जीवनघाती साबित हो सकता था। एबीओ-इन्कॉम्पेटिबल ट्रांसप्लांट करना भी सुरक्षित विकल्प नहीं था क्योंकि डोनर ब्लड-ग्रुप के प्रति एंटीबॉडी लेवल बहुत अधिक था और मरीजों का कमजोर इम्यून सिस्टम भी जोखिम का कारण था।
दोनों मरीजों को एबीओ-कॉम्पेटिबल ट्रांसप्लांट के उपयुक्त बनाने के लिए काफी हद तक इम्यूनोसप्रेशन की आवश्यकता होती और इससे ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में भी देरी हो रही थी। ऐसे में, स्वॉप ट्रांसप्लांट ही सबसे सुरक्षित और उपयुक्त विकल्प बचा था। इस फैसले के चलते दोनों मरीजों को कॉम्पेटिबल किडनी मिल सकी और इम्युनोसप्रेशन भी न्यूनतम रहा था कुल-मिलाकर, बेहतर परिणाम मिले। इससे यह भी सुनिश्चित किया जा सका कि ट्रांसप्लांट समय पर हो, जो कि उनके स्वास्थ्य और जीवन को बचाने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था। इन मामलों में, डोनर्स के असाधारण साहस और परोपकारी भाव की भी सराहना करनी होगी जिन्होंने जीवनरक्षा के इस अद्भुत प्रयास के लिए अपनी सहमित प्रदान की।”
डॉ पीयूष वार्ष्णेय, डायरेक्टर – यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने बताया, “चार सर्जरी एक साथ करना लॉजिस्टिक्स की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण था। इसमें सटीकता, परस्पर तालमेल और बेहद योग्य टीमों की आवश्यकता थी। दोनों ही मामलों में जोखिम भी था जिसकी वजह से जटिलताएं बढ़ गई थीं, लेकिन हमारे प्रशिक्षित और कुशल मेडिकल स्टाफ तथा दोनों परिवारों के समर्पण भाव के चलते यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये ट्रांसप्लांट सफल रहें। इस प्रकार के मामलों में केवल मेडिकल उत्कृष्टता ही काफी नहीं होती, बल्कि अंगदान के पीछे छिपे साहसपूर्ण मानवीय प्रयास और सबसे बढ़कर परिवार का सहयोग भी काफी मायने रखता है।”
मोहित सिंह, जोनल डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने कहा, “फोर्टिस नोएडा में, हमारा जोर अत्याधुनिक, नैतिक और मरीज-केंद्रित सुविधाएं प्रदान करने पर होता है ताकि मरीजों को लंबा जीवन मिले और उनकी जीवन गुणवत्ता में भी सुधार हो। ये सफल स्वॉप ट्रांसप्लांट हमारी क्लीनिकल टीमों की उत्कृष्टता और परस्पर सहयोग का प्रमाण हैं। साथ ही, ये समय पर क्लीनिकल हस्तक्षेप, जनता के स्तर पर जागरूकता और अंगदान से जीवनरक्षा करने का उदाहरण भी हैं।”