भूस्थानिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी’ पर त्रिसाप्ताहिक क्षमता निर्माण कार्यक्रम का हुआ आयोजन

नोएडा। जियोस्पेशियल प्रौद्योगिकियों में ज्ञान और क्षमता विकसित करने और सरकार, शिक्षा, अनुसंधान और औद्योगिक संगठनों के बीच नेटवर्किंग को बढ़ावा देने के लिए एमिटी फांउडेशन फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन एलायंस द्वारा भारत सरकार के विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी विभाग, एमिटी स्कूल आॉफ नैचुरल रिर्सोस एंड संस्टेनेबल डेवलपमेंट और एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ जियोइर्न्फोमेटिक्स एंड रिमोट सेसिंग के सहयोग से ‘‘भूस्थानिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी’’ विषय पर त्रिसाप्ताहिक विंटर स्कूल क्षमता निर्माण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ डिफेंस स्पेस एजेंसी के महानिदेशक एयर वाइस मार्शल पवन कुमार, एमिटी विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश की वाइस चांसलर डा बलविंदर शुक्ला, इसरो चेयरमैन के ओएसडी डा राजीव जैसवाल, ईएसआरआई इंडिया लिमिटेड के वरिष्ठ निदेशक (रणनीती) श्री राजेश सी माथुर और एमिटी साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन फांउडेशन के अध्यक्ष डा डब्लू सेल्वामूर्ती द्वारा किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के विभिन्न संस्थानों जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय, आईआईटी रूड़की आदि से 35 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए डिफेंस स्पेस एजेंसी के महानिदेशक एयर वाइस मार्शल पवन कुमार ने कहा कि कार्यक्रम में उपस्थित प्रतिभागी देश को अंतरिक्ष प्रारंभिक राष्ट्र से अंतरिक्ष प्रधान राष्ट्र में परिवर्तन करेगें। वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 630 बिलियन डॅालर की है जो आने वाले 3 वर्षो में 10 गुना हो जायेगी और भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था जो 8 बिलियन डॉलर का है वह 40 बिलियल डॉलर का हो जायेगा। आप सब इस अंतरिक्ष क्षेत्र को 2 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक बढ़ता देखेगें।
एयर वाइस मार्शल पवन कुमार ने कहा कि यह क्षमता निर्माण कार्यक्रम सही वक्त पर हो रहा है, आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में सरकार, सेना, निजी क्षेत्र और अकादमिक को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी प्रमुख प्रवर्तक है किंतु ना तो यह युद्ध लड़ सकता है और ना ही समस्या का निवारण कर सकता है। प्रौद्योगिकी एंव मानव मस्तिष्क का मिश्रण आवश्यक है। वर्तमान की भू राजनैतिक परिस्थितियों में देशों के मध्य चल रहे संर्घष में अंतरिक्ष क्षेत्र विशेष भूमिका निभा रहा है और देश को 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए भूस्थानिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मिलकर कार्य करना आवश्यक है।
एमिटी विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश की वाइस चांसलर डा बलविंदर शुक्ला ने कहा कि राष्ट्रीय भू-स्थानिक कार्यक्रम का उद्देश्य राष्ट्रीय भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र को उत्प्रेरित करना है। इसका मिशन भू-स्थानिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, नीति, समाधान, क्षमता निर्माण, उद्यमशीलता और शासन के सभी स्तरों पर सतत सामाजिक-आर्थिक विकास प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। एमिटी ने भू-स्थानिक के महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानकर अनुसंधान संस्कृति व नवचार को बढ़ावा दिया है।
इसरो चेयरमैन के ओएसडी डा राजीव जैसवाल ने कहा कि देश को भू-स्थानिक क्षेत्र में अग्रणी पायदान पर खड़ा करने के लिए राष्ट्रीय भू-स्थानिक कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन हमें अकादमिक और उद्योगों से कौशलयुक्त मानवसंसाधन प्रदान करेगा जिसकी हमें इस वक्त आवश्यकता है। निजी क्षेत्रों की भागीदारी से आज ंअतरिक्ष क्षेत्र हर दिन प्रगति के नये आयाम बना रहा है जहां पहले मात्र एक स्टार्टअप हुआ करता था आज अंतरिक्ष क्षेत्र में लगभग 250 स्टार्टअप कार्य कर रहे है। जो प्रतिभागीयों के लिए एक अवसर है। आज पृथ्वी अवलोकन हमारे निजी जीवन का भाग है जो आज से 30 साल पहले से 100 गुना अधिक तेज है। सरकार विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को लेकर पूरी तरह तैयार है इसके लिए सही तरीके से योजनाये तैयार है।
ईएसआरआई इंडिया लिमिटेड के वरिष्ठ निदेशक (रणनीती) राजेश सी माथुर ने कहा कि मानव संसाधन को प्रर्वतक किस प्रकार बनाना है और उन्हे कौशल युक्त बना कर राष्ट्र निर्माण में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा। जनरेटिव एआई के साथ एकीकृत भू-सूचना विज्ञान और रिमोट सेंसिंग, बेहतर निर्णय लेने, बढ़ी हुई दक्षता और बढ़ी हुई सटीकता जैसे कई क्षेत्रों में सर्वाेत्तम परिणाम दे सकता है। प्रतिभागियों को तीन सप्ताह के कार्यक्रम के दौरान जितना संभव हो उतना ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और इस अद्भुत अवसर का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए।
इस अवसर पर एमिटी साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन फांउडेशन के अध्यक्ष डा डब्लू सेल्वामूर्ती, एडिशनल प्रो वाइस चांसलर डा चंद्रदीप टंडन, एमिटी स्कूल आॉफ नैचुरल रिर्सोस एंड संस्टेनेबल डेवलपमेंट के निदेशक डा एस पी सिंह ने अपने विचार रखे। तीन सप्ताह के कार्यक्रम के दौरान, “स्थानिक धारणा और दृश्यीकरण”, “स्थानिक संबंध और पैटर्न”, “स्थानिक डेटा स्रोत और उपकरण”, “स्थानिक विश्लेषण तकनीक”, और “नीति और योजना में स्थानिक सोच” पर सत्र भी आयोजित किए जाएंगे।