हिंदी के शिक्षकों की संख्या में होगा इजाफा, भ्रम फैलाने वाले शिक्षकों को पाठ्यक्रम लागू होने पर लगेगा पता

हिंदी के शिक्षकों की संख्या में होगा इजाफा, भ्रम फैलाने वाले शिक्षकों को पाठ्यक्रम लागू होने पर लगेगा पता

शैक्षिक सत्र --2022--23 से विश्वविद्यालयों /कॉलेजों में लागू होने जा रही नई शिक्षा नीति में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाएगा । क्षेत्रीय भाषाओं में प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा के देशव्यापी पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे है । इस नीति के तहत संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज 22 भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा विकल्प के रूप में नहीं बल्कि अनिवार्य रूप से विषय के रूप में भी और शिक्षा के माध्यम के रूप में लागू होने जा रही है । इसका स्पष्ट उल्लेख नई शिक्षा नीति के द्वारा बनाए गए मसौदे में शामिल है लेकिन कुछ शिक्षकों द्वारा यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि नई शिक्षा नीति के लागू होने पर कॉलेजों में हिंदी विषय का वर्कलोड कम हो जाएगा जबकि हिंदी का वर्कलोड बढ़ने की बात श्री अरबिंदो कॉलेज के हिंदी विभाग के प्रभारी व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.हंसराज सुमन ने कही है । हिंदी विषय पढ़ना अब हर छात्र का अनिवार्य होगा । उनका कहना है वे किसी तरह के भ्रम में न आएं बल्कि पाठ्यक्रम संबंधी मसौदे को अवश्य पढ़ें हिंदी के प्रति सभी तथ्य स्पष्ट हो जाएंगे ।

  एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.हंसराज सुमन का कहना है कि कुछ समाचार पत्रों के माध्यम से यह बात सामने आई है की बी.ए. , बी.कॉम व बी.एससी  अर्थात स्नातक स्तर पर पहले से चले आ रहे पाठ्यक्रम में सम्मिलित AECC ( योग्यता संवर्द्धन अनिवार्य कोर्स ) को हटा दिया गया है उसके स्थान पर अब AEC अर्थात ( योग्यता संवर्द्धन कोर्स ) लागू कर दिया गया है जिससे अनिवार्यतः शब्द हट गया है । ऐसी स्थिति में अंग्रेजी विषय के साथ हिंदी को जोड़कर एक भ्रम की स्थिति पैदाकर दी गई है जिसमें कहा जा रहा है कि अंग्रेजी और हिंदी भाषा की अनिवार्यतः खत्म करने से अंग्रेजी व हिंदी के शिक्षकों का वर्कलोड घट जाएगा और तमाम तदर्थ शिक्षक इन विषयों से बाहर हो जाएंगे ? किंतु बता दें कि यह अनिवार्यत: हिंदी को खत्म करने के लिए नहीं है बल्कि स्पष्ट रूप से AEC के अंतर्गत AEC को परिभाषित करते हुए शिक्षा नीति के मसौदे में लिखा है कि क्षेत्रीय भाषाएं अर्थात संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज 22 भाषाएं पर्यावरण विज्ञान , सतत विकास विषयों को प्रत्येक अनुशासन में अनिवार्य रूप से लागू करना संस्थानों की जिम्मेदारी होगी । यानि क्षेत्रीय भाषा और संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज हिंदी एक क्षेत्रीय भाषा के रूप में , इसके अतिरिक्त राजभाषा की अपनी अनिवार्य स्थिति के कारण हिंदी प्रत्येक अनुशासन में अनिवार्यतः लागू होगी यानी कि हिंदी का वर्कलोड स्नातक स्तर पर घटने की बजाय बढ़ जाएगा और यह संस्थानों की बाध्यता भी होगी कि वे हिंदी को हर अनुशासन में शामिल करें ।

डॉ.सुमन ने बताया है कि यहाँ हिंदी किसी विकल्प के रूप में नहीं है जहाँ हिंदी भाषी प्रदेशों में उसे विकल्प के रूप में चुना जाए । उनका कहना है कि हिंदी प्रदेश में क्षेत्रीय भाषा हिंदी होने के कारण वह किसी विकल्प के रूप में नहीं बल्कि AEC के अंतर्गत अनिवार्य रूप से लागू रहेगी । अब हिंदी की इस अनिवार्यता के कारण हिंदी विषय के रूप में बी. ए. कार्यक्रम ही नहीं बल्कि वाणिज्य तथा विज्ञान विषयों के साथ शामिल करके पढ़ाई जाएगी । डॉ.सुमन ने बताया है कि शैक्षिक सत्र--2022--23 से लागू नई शिक्षा नीति के अंतर्गत विश्वविद्यालयों / कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में AEC के अंतर्गत क्षेत्रीय भाषा के रूप में हिंदी की अनिवार्य स्थिति के कारण आने वाले सत्र में और भी अनुशासनों में हिंदी पढ़ाएं जाने के कारण वर्कलोड बढ़ जाने से हिंदी के शिक्षकों की और मांग बढ़ेगी और जो भ्रम फैलाया जा रहा है वह भी जल्दी दूर हो जाएगा । उनका कहना है कि कुछ शिक्षकों द्वारा गलत मंशा से उनके हिंदी विरोध के कारण यह  भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है । 

डॉ.सुमन का कहना है कि हिंदी की आज वैश्विक मान्यता को कोई इंकार नहीं कर सकता । दिनों दिन उसकी मांग व महत्ता दोनों बढ़ती जा रही है । संयुक्त राष्ट्र संघ तक ने आज हिंदी को एक माध्यम भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया है यानी वैश्विक व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी में सूचनाओं का आदान-प्रदान शुरू कर दिया गया है ऐसे में स्वंय के देश में क्या हिंदी की उपेक्षा संभव है ? यह मात्र हिंदी विरोध ही है जो कुछ शिक्षकों की साम्राज्यवादी सोच तथा औपनिवेशिक गुलामी के असर के कारण आज भी हिंदी को दोयम दर्जे की भाषा सिद्ध करते रहने के कारण बनी हुई है लेकिन इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है । विदेशी भाषा से सोचने की आदत , देशी भाषाओं को खारिज करने का औजार होती है जबकि स्वतंत्रता सेनानी भले ही अंग्रेजी शिक्षा -दीक्षा सम्पन्न रहे हो किंतु उन्होंने हमेशा हिंदी को देश के सम्प्रेषण की भाषा स्वीकार किया है । चाहे वह गांधी जी हो , नेहरू जी हो , स्वामी विवेकानंद हो , दयानंद सरस्वती हो या फिर तमिल के सुब्रमण्यम भारती हो सबने हिंदी को देश को एक जुट करने वाली भाषा माना है ।

 डॉ.सुमन ने बताया है कि आज जबकि शिक्षा नीति में भी हिंदी ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रीय भाषाओं को महत्ता दी जा रही है ऐसे में कुछ शिक्षकों द्वारा बार-बार हिंदी को एक नकारात्मक विभेद पैदा करने के लिए हिंदी को उछालना उनकी गलत मंशा का सूचक है । हिंदी ना तो पाठ्यक्रमों से कम होने वाली है ना ही उच्च शिक्षण संस्थानों में उसका वर्कलोड घटने वाला है , इस भ्रम से हमें दूर रहने की आवश्यकता है । उन्होंने बताया है जिन कॉलेजों में हिंदी ऑनर्स व हिंदी पढ़ाई जा रही है वहाँ के शिक्षकों को हिंदी के वर्कलोड व उसके पाठ्यक्रम पर चर्चा भी जल्द की जाएगी ताकि हिंदी के प्रति फैलाया जा रहा भ्रम को दूर किया जा सकें ।