श्री राम ने भंग किया धनुष, कल होगा राम विवाह

नोएडा।PNI News। श्रीराम मित्र मण्डल द्वारा आयोजित राम लीला मंचन सेक्टर-62 के तीसरे दिन सचिदानंदन राय रिटायर्ड डीआईजी रजिस्ट्रेशन एवं भाजपा सह- संयोजक सुसाशन एवं केंद्र राज्य शासकीय समन्वय विभाग, डॉ सूर्यकांत शर्मा, राधाकृष्ण गर्ग, राजकुमार गर्ग, प्रदीप अग्रवाल, सुधीर कुमार गुप्ता, उमानन्द कौशिक, सुनील जैन, अजीत चाहर, राधेश्याम गोयल, एडवोकेट राकेश सोनी, सुधीर पोरवाल एवं आशीष द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर लीला का शुभारंभ किया गया।

समिति के महासचिव मुन्ना कुमार शर्मा ने सभी अतिथियों व उपस्थितजनों का स्वागत किया। अध्यक्ष धर्मपाल गोयल ने सभी उपस्थितजनों का धन्यवाद ज्ञापन किया। प्रथम दृश्य में प्रभु राम मुनि विश्वामित्र के साथ रास्ते में जाते हैं इसी बीच एक आश्रम दिखाई दिया जिसमें पशु पक्षी व जीव जन्तू नहीं थे। भगवान राम ने पत्थर की शिला देखकर विश्वामित्र जी से पूछा, विश्वामित्र ने पूरी कथा राम जी को बताई कि यह शिला गौतम मुनि की पत्नी हैं जो श्राप वश पत्थर की देह धारण किये है। श्रीराम जी के पवित्र चरणों की रज का स्पर्श पाते ही अहिल्या प्रकट हो जाती हैं एवं भगवान के चरणों में लिपट जाती है और कहती हैं । ऐसी प्रार्थना कर अहिल्या पति लोक को चली जाती हैं।

अगले दृश्य में मुनि विश्वामित्र के साथ चलते-चलते जनकपुर के निकट पहुंच जाते हैं। जनकपुर पहुंचकर श्रीराम एवं लक्ष्मण जनक बाजार में पहुंचते हैं जहाँ तरह तरह की दुकानें सुसज्जित थी विभिन्न प्रकार के पकवान एवं तरह तरह की मिठाईयां देख उनका मन प्रसन्न हो गया । अगले दृश्य मे माता सीता मनचाहे वर के लिए माता गौरी की पूजा करती हैं ताकि उन्हें राम वर के रुप मे प्राप्त हो और वह अपना मन चाहा वर प्राप्त कर सकें। मुनि विश्वामित्र के साथ चलते-चलते जनक पुर पहुंच जाते हैं। विश्वामित्र के आगमन का समाचार सुनकर राजा जनक उनके पास पहुंचते हैं मुनि को प्रणाम कर जब दोनों भाईयों को देखते हैं । मुनि जी राम लक्ष्मण का परिचय देते है । महाराजा जनक शतानंद जी को बुलाकर मुनि विश्वामित्र को आमंत्रण भेजते हैं। मुनि विश्वामित्र राम लक्ष्मण के साथ धनुष यज्ञशाला देखने पहुँचते हैं जहाँ पर सीता का स्वयंबर होना है। सीता जी को जनक बुलाते हैं और बंदीजन जनक की प्रतिज्ञा को बताते हैं कि जो भी यज्ञ शाला में रखे धनुष को तोड़ेगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा। रावण ,बाणासुर जैसे तमाम योद्धा आये लेकिन धनुष को हिला तक नहीं सके। यह देखकर जनक जी व्याकुल हो उठते हैं। इसके बाद जनक जी धनुष न टूटने पर विलाप कर कहते हैं कि लगता है अब पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है। लक्ष्मण जी उनकी बात सुनकर क्रोध कर कहते हैं कि अगर भईया राम आज्ञा दे यह धनुष क्या पूरा ब्रह्माण्ड को तोड़-मरोड़ डालू । राम जी लक्ष्मण को शांत करते हैं। इसके बाद विश्वामित्र भगवान राम को आदेश देते हैं । भगवान राम धुनष की प्रत्युन्चा चढ़ाते हैं कि धनुष भंग हो जाता है, सभी जनकपुर वासियों में खुशी दौड़ जाती है सीता जी राम को वर माला डालती हैं। सुर नर मुनि फूलों की वर्षा करते हैं। शिव धनुष के टूटने की बात सुनकर परशुराम जी आते हैं और जनक जी को कहते हैं हे दुष्ट धनुष किसने तोड़ा है इसके बाद लक्ष्मणव परशुराम का संवाद होता है। बाद में परशुराम जी को ज्ञात हो जाता है कि राम और कोई नहीं साक्षात विष्णु का अवतार हैं और वह क्षमा मांगते हुए कहते हैं । क्षमा के बाद परशुराम जी महेंद्र पर्वत पर लौट जाते हैं। इसी के साथ तीसरे दिन की लीला मंचन का समापन हो गया।
कल 10 अक्टूबर को राम बारात, रामजानकी विवाह, अवध की खुशियां की लीला का मंचन किया जायेगा।