6,500 से अधिक प्रवासी मजदूरों की लाशों की नींव पर कतर के दोहा आज से शुरू होगा फुटबॉल का महाकुंभ

6,500 से अधिक प्रवासी मजदूरों की लाशों की नींव पर कतर के दोहा आज से शुरू होगा फुटबॉल का महाकुंभ

कतर के विश्व कप स्टेडियम बनाने वाले अपने सैकड़ों हजारों प्रवासी मजदूरों की कामकाजी परिस्थितियों की लगातार आलोचना का सामना करना पड़ा है. यह आयोजन अत्यंत अमानवीय , बाज़ारू घृणित मानसिकता, क्रूर खेल  व्यापार व शैतानी खेल अधिक बन गया है व मानवाधिकारो की खुली मज़ाक़ बन चुका है। 

भारत सरकार के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2020 से 2022 के बीच पिछले 3 साल में 72,114 मजदूर भारत से कतर पहुंचे. विदेश मंत्रालय के मुताबिक, 2011 से 2022 के बीच कतर में रहते हुए 3,313 भारतीय मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी. फरवरी 2021 में द गार्जियन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के 6,500 से अधिक प्रवासी मजदूरों की मृत्यु हुई है. ये मौतें जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक गर्मी व ख़राब परिस्थितियों में काम करने के कारण हुईं। 

कतर में सभी श्रम कानूनों को तात पर रखकर काम लिया जा रहा है. द गार्डियन के हवाले से दावा किया गया है कि वहां सप्ताह में छह दिन 12 घंटे की शिफ्ट पर काम करना पड़ता है. जिसमें ओवरटाइम के लिए कानूनी दर नहीं मिलती है.मजदूरों को उनके श्रम शिविर में छह मजदूरों के साथ एक कमरा साझा करना पड़ता है, जो कि अवैध है. खाना भी ऐसा मिलता है जिसे कुत्ता भी नहीं खाए.इस सब के बावजूद मजदूर वहां काम करने को मजबूर हैं क्योंकि उन्हें काम की जरुरत है. नेपाल में एक मजदूर को औसतन दिन के 400 रूपए मिलते हैं, जबकि कतर में उनको इसका लगभग तीन गुना मिलता है.

कतर (Qatar) की राजधानी दोहा (Doha) में एक ही क्षेत्र में रहने वाले हजारों विदेशी श्रमिकों के अपार्टमेंट ब्लाक खाली करा लिए गए। यहां पर विश्वकप के दौरान फुटबाल प्रशंसकों के रुकने की व्यवस्था की जाएगी। इससे मुख्य रूप से एशियाई और अफ्रीकी श्रमिकों को फुटपाथ पर आश्रय लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।