विभाजन की वेदना विभाजन के निरस्त होने से ही मिटेगी: डॉ. मोहन भागवत
‘विभाजनकालीन भारत के साक्षी’ पुस्तक का हुआ विमोचन
नोएडा।PNI News। भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मन्दिर में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचलाक डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि मातृभूमि का विभाजन न मिटने वाली वेदना है और यह वेदना तभी मिटेगी जब विभाजन निरस्त होगा। डॉ. भागवत ने कृष्णानन्द सागर की पुस्तक ‘विभाजनकालीन भारत के साक्षी’ का विमोचन किया।
पुस्तक के बारे में बताते हुए डॉ. मोहन भागवत ने कहा इतिहास सभी को जानना चाहिए। “पूर्व में हुईं गलतियों से दुखी होने की नहीं अपितु सबक लेने की आवश्यकता है। गलतियों को छिपाने से उनसे मुक्ति नहीं मिलेगी,” उन्होंने कहा।

उन्होंने कहा, “ विभाजन का उपाय, उपाय नहीं था। विभाजन से न तो भारत सुखी है और न वे सुखी हैं जिन्होंने इस्लाम के नाम पर विभाजन किया।” विभाजन की विभीषिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इसे तब से समझना होगा जब भारत पर इस्लाम का आक्रमण हुआ और गुरु नानक देव जी ने सावधान करते हुए कहा था – यह आक्रमण देश और समाज पर हैं किसी एक पूजा पद्दती पर नहीं।
“इस्लाम की तरह निराकार की पूजा भारत में भी होती थी किन्तु उसको भी नहीं छोड़ा गया क्योंकि इसका पूजा से सम्बन्ध नहीं था अपितु प्रवत्ति से था और प्रवत्ति यह थी कि हम ही सही हैं, बाकी सब गलत हैं और जिनको रहन है उन्हें हमारे जैसा होना पड़ेगा या वे हमारी दया पर ही जीवित रहेंगे। इस प्रवत्ति का लगातार आक्रमण चला और हर बार मुंह की कहानी पड़ी।”
हमारा संविधान और हमारी परम्परा के अनुसार राज्य किसी पूजा (पद्दती) का नहीं होता, राज्य धर्म का होता है और वह धर्म पूजा से सम्बन्ध काम रखता है, वह धर्म सबको जोड़ने और सबकी उन्नति के लिए आवश्यक कार्य पर बल देता है।

डॉ भागवत ने देश की स्वतन्त्रता को लेकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता के विषय में बताते हुए कहा कि वर्ष 1930 में डॉ. हेडगेवार ने सावधान करते हुए हिन्दू समाज को संगठित होने को कहा था। “भीष्मपितामह ने कहा था कि विभाजन कोई समाधान नहीं है, जबकि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि रणछोड़ कर मत भागो। परन्तु हमारे नेता मैदान छोड़कर भाग गए। मुट्ठी भर लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए हमने कई समझौते किए। राष्ट्रगान से कुछ पंक्तियां हटाईं, राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में परिवर्तन किया, परन्तु वे मुट्ठीभर लोग फिर भी सन्तुष्ट नहीं हैं,” डॉ भागवत ने कहा।

डॉ भागवत ने प्रश्न उठाया कि यदि हमारे नेताओं ने पाकिस्तान की माँग ठुकरा दी होती तो क्या होता? वह बोले – “कुछ नहीं होता, परन्तु तब के नेताओं को स्वयं पर विश्वास नहीं था। वे झुकते ही गए।“
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के महामन्त्री श्रीराम आरावकर और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव कुमार रत्नम रहे तथा अध्यता पूर्व न्यायाधीश शम्भूनाथ श्रीवास्तव ने की.
इस अवसर पर कार्यक्रम में उपस्थित विभाजनकाल के प्रत्यक्षदर्शियों को डॉ. मोहनराव भागवत ने सम्मानित भी किया।


