लो एएमएच (Low AMH)  क्या है और कैसे यह महिलाओं की फर्टिलिटी को प्रभावित करता है - डॉ चंचल शर्मा 

लो एएमएच (Low AMH)  क्या है और कैसे यह महिलाओं की फर्टिलिटी को प्रभावित करता है - डॉ चंचल शर्मा 

एएमएच (एंटी-मुलेरियन हार्मोन) एक प्रकार का हार्मोन है। इस हार्मोन का निर्माण अंडाशय के अंदर पाये जाने वाले फॉलिकल्स सेल से होता है। एएमएच लेवल के द्वारा ओवेरियन रिज़र्व के बारे में जानकारी मिलती है। एएमएच लेवल दर्शाता है कि महिलाओं के अंडाशय में कितने अंडे  (फॉलिकल्स ) शेष बचे है। महिला की ओवरी के अंडों का आंकलन करने के लिए एएमएच टेस्ट की मदद लेनी पड़ती है। एंटी-मुलेरियन हार्मोन के स्तर के स्तर की कमी दर्शाती है। कि महिला की ओवरी में कम अंडे बचे है। जिसके कारण महिला को कंसीव करने में दिक्कत जाती है। इस समस्या को लो एएमएच कहते हैं। एक महिला अपने जीवन में निश्चित अंडों के साथ पैदा होती है और उम्र के साथ उनकी संख्या घटने लगती है। 

30-34 वर्ष की आयु के बीच की 48.7% महिलाओं में एएमएच 2 एनजी/एमएल या उससे कम होता है और 23.3% में एएमएच 1 एनजी/एमएल से कम होता है।  इससे पता चला कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ 2 एनजी/एमएल से कम एएमएच वाली महिलाओं के प्रतिशत में वृद्धि  हो रही है। 

एएमएच टेस्ट करने के लिए महिला का ब्लड सैम्पल कलैक्ट किया जाता है और फिर उसे टेस्ट के लिए भेजा जाता है। जिसे एएमएच टेस्ट कहते हैं। यह टेस्ट महिला की ओवरी में बचे हुए अंडों की संख्या की जानकारी देता है। 

गर्भधारण करने के लिए एएमएच लेवल कितना होना चाहिए ?
एएमएच का सामान्य लेवल 2.20 से 6.80 NG/ML के बीच होना चाहिए। परंतु 1 NG/ML से कम हो तो ऐसे में लो एएमएच की समस्या बनती है। जो महिलाएं लो एएमएच की समस्या का सामना कर रही हैं। उनको गर्भधारण करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। 

एक लड़की कितने अंडों के साथ पैदा होती है?
जन्म के साथ लड़की में 66 लाख अंडे होते है और इनकी संख्या तेजी के साथ घटने लगती है और यह केवल 10 से 11 लाख के बीच ही रह जाते है। इन आंकड़ों में थोड़ा बहुत परिवर्तन भी हो सकता है। जब लड़की यौवन अवस्था तक पहुंचती है तो उस दौरान 11000 और खो देती है। किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते महिला के ओवरी में 3-4 लाख अंडे ही शेष रह जाते है। जो गर्भावस्था में मददगार होते हैं। इन 3 से 4 लाख अंड़ों में से केवल 500 अंडे ओव्यूलेशन के लिए तैयार होते है और शेष मासिक धर्म के दौरान बह जाते हैं। 

लो एएमएच की समस्या कैसे गर्भधारण को प्रभावित करती है ?
कंसीव करने में एएमएच हॉर्मोन की मुख्य भूमिका होती है। समय के साथ एएमएच की समस्या होना तो आम बात है। परंतु आज कल तो कम उम्र की महिलाओं में भी लो एएमएच की समस्या देखने को मिल रही है। जिसके कारण वह गर्भधारण नही कर पाती हैं। लो एएमएच की मुख्य वजह आज की जीवनशैली और डाइट को माना जाता है। क्योंकि तनाव पूर्ण जीवन ने महिलाओं के जीवन को बुरी तरह से झकझोर दिया है। जिससे प्रजनन समस्याएं आना एक सामान्य सी बात हो चुकी है। ऐसे में गर्भधारण का प्रयास करने वाली महिलाओं को सलाह दी जाती है। कि उनको संतुलित आहार और तनावमुक्त जीवन जीने की सलाह दी जाती हैं। 

क्या लो एएमएच पर भी प्रेगनेंसी संभव है ?
ऐसे भी बहुत सारे दंपति देखने को मिल हैं। जो कम एएमएच में भी गर्भधारण कर मातृत्व सुख प्राप्त करने में सफल हुए हैं। परंतु यह निर्भर करता है। कि आपके ओवरी में कितने अंडे शेष बचे है। जो गर्भावस्था का निर्माण करने में मदद करते हैं। 
ऐसे में यह देखना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। कि यदि अंडे कम है तो क्या उन अंडो की गुणवत्ता बेस्ट क्लालिटी है। यदि गुणवत्ता बेहतर है तो आप कम एएमएच के साथ भी प्रेगनेंट हो सकती है। 

क्या आयुर्वेद के द्वारा लो एएमएच की समस्या का समाधान संभव है ?
लो एएमएच की समस्या एक ऐसी समस्या है। उम्र के साथ हर महिला में देखने को मिलती थी।  परंतु आज के समय में कम उम्र वाली महिलाओं में यह आम बात होती जा रही है। जिसके पीछे लाइफस्टाइल और डाइट का विशेष रोल होता है। क्योंकि यह अक्सर धूम्रपान, शराब व अधिक तनाव लेनी वाली महिलाओं में देखने को मिलती है। ऐसे में आयुर्वेद उपचार बहुत ही असरकारी हो सकता है। ऐसे में जो महिला की ओवरी में फॉलिक्लस बचे है उनको आयुर्वेदिक चिकित्सा से गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। जिससे जल्द से जल्द कंसीव करने में मदद मिलती है। 

यह खास जानकारी आशा आयुर्वेदा की निःसंतानता विशेषज्ञ डॉ चंचल शर्मा से प्रेसवार्ता के दौरान प्राप्त हुई है।