क्या हमारा समाज कायरों और डरपोक लोगों का झुंडमात्र है? - आर एन श्रीवास्तव

अनेक वीडियो इस प्रकार के आते हैं कि शेर एक पशु को खा रहा है वह पशु तड़प रहा है और बाकी सजातीय विजातीय पशु चारों तरफ खड़े हुए देख रहे हैं। सब पशुओं के पास लड़ने के लिए पंजे, खुर और दांत नहीं होते और ना ही तीव्र बुद्धि होती है। हम लोगों के पास तीव्र शातिर बुद्धि होती है, तेज गति से काम करने वाले हाथ होते हैं और आत्मरक्षा के लिए आक्रमण करने के प्रकृतिजन्य गुण भी होते हैं लेकिन हम इन सब का प्रयोग केवल डरने और आत्मरक्षा के लिए करते हैं। हम भी अपने सामने किसी निरीह व्यक्ति की जघन्य हत्या होते हुए चुपचाप देख सकते हैं।
क्या हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि समाज में कितनी लड़कियों की लड़के इस प्रकार जघन्य हत्या करते हैं। क्या हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि मरने वाली लड़की कितनी अबोध थी, क्या हमें कोई फर्क नहीं पड़ता की आस पास पड़े हुए पत्थरों के ढेर से अगर 2/4 पत्थर उस हत्यारे की तरफ फेंके होते तो निश्चित तौर पर वह भाग जाता। थोड़ा सा जन प्रतिरोध होते ही वह भाग जाता और शायद वह लड़की बच जाती।
क्या हमारा समाज कायरों और डरपोक लोगों का झुंडमात्र है?
नाबालिक लड़की की हत्या का वीडियो जितनी बार देखा जाता है उतनी बार अपने इंसान होने पर शर्म आती है और उन लोगों की मानसिकता पर शर्म आती है जो वहां चुपचाप खड़े देख रहे थे। घर से निकलते हुए अपना ख्याल रखने की हिदायत केवल इसलिए नहीं मिलती कि केवल अपनी ही रक्षा करना। किसी निरीह, कमजोर और अबोध व्यक्ति की रक्षा करने के लिए आक्रमण करना मानवीय स्वभाव का अंग होना चाहिए। हम लोग कब तक इन हत्याओं को चुपचाप देखा करेंगे और कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे।